आध्यात्मिक विश्वविद्यालय में आपका स्वागत है, आध्यात्मिक विश्वविद्यालय किसी भी व्यक्ति को आध्यात्म अथवा सत्य का मार्ग प्रदर्शित नहीं करता है और नाहीं किसी भी व्यक्ति को आध्यात्म अथवा सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है किन्तु जो व्यक्ति स्वयं अपनी इच्छा से सत्य-कर्म के मार्ग पर चलने के इच्छुक है या जो व्यक्ति सत्य-कर्म के मार्ग से विचलित होकर भटक गए है या जो व्यक्ति असत्य-कर्म के कारण किसी भी प्रकार के दुख, दरिद्रता या चिंता से परेशान है या जो व्यक्ति असत्य-कर्म का त्याग करना चाहते है तो ऐसे व्यक्तियों को सत्य-कर्म का मार्ग प्रदर्शित करना ही आध्यात्मिक विश्वविद्यालय का मुख्य कार्य, लक्ष्य एवं उद्देश्य है।
सत्य-कर्म के मार्ग पर चलने से कोई भी व्यक्ति साधु-संत या सन्यासी नहीं बनते है और नाहीं किसी भी प्रकार का ढोंग या पाखंड करते है बल्कि सभी प्रकार के सांसारिक एवं भौतिक सुखों का सम्पूर्ण आनंद लेते हुए अंत में मोक्ष या शांति प्राप्त करते है जो किसी भी असत्य-कर्म करने वाले व्यक्ति के लिए दुर्लभ या असंभव है, प्रारंभ में असत्य-कर्म का त्याग कर सत्य-कर्म के मार्ग पर चलने से कुछ समस्या आती है जो असत्य-कर्म के फल स्वरुप सामने नजर आते है किन्तु निरंतर अपने आत्म-प्रयास से व्यक्ति अपने जीवन के समस्याओं के निल नदी को सरलता से पार करके अपने परिवार एवं बच्चों के साथ दीर्घ आयु तक सुखमय जीवन व्यतीत करते है।
श्री अजीत कुमार
संस्थापक, संचालक एवं मार्गदर्शक
यदि किसी भी व्यक्ति के जीवन में किसी भी प्रकार का दुख, दरिद्रता या चिंता अथवा असाध्य बीमारी या समस्या है तो निश्चित ही यह स्वयं अथवा पूर्वजों के द्वारा किये गए असत्य-कर्म का फल है जो कर्ज अथवा ऋण के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है तथा अगली संतान अथवा पीढ़ी को विरासत के रूप में प्राप्त होता है जबतक की यह कर्ज अथवा ऋण पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हो जाता है तथा किसी भी प्रकार की समस्या के समाधान हेतु किसी भी व्यक्ति के लिए असत्य-कर्म का पूर्ण रूप से त्याग कर सत्य-कर्म करना अनिवार्य है तथा जिस व्यक्ति की आत्म-शक्ति जागृत है केवल ऐसे व्यक्ति ही सत्य-कर्म के द्वारा अपने किसी भी समस्या का स्थाई समाधान करने में सक्षम हो सकते है।
सत्य-कर्म का फल अमृत के समतुल्य है जिसका सेवन करने से किसी भी व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि एवं शांति प्राप्त होता है तथा असत्य-कर्म का फल विष के समतुल्य है जिसका सेवन करने से किसी भी व्यक्ति के जीवन में दुख, दरिद्रता एवं चिंता प्राप्त होता है, कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता एवं सामर्थ के अनुसार स्वयं अपनी इच्छा से आध्यात्मिक विश्वविद्यालय में नामांकन ग्रहण करके अपने आत्म-शक्ति को जागृत करके सत्य-कर्म का मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते है तथा सत्य-कर्म के द्वारा अपने जीवन में सुख, समृद्धि एवं शांति प्राप्त कर सकते है तथा अपने परिवार एवं बच्चों के साथ दीर्घ आयु तक सुखमय जीवन व्यतीत करते हुए अंत में मोक्ष अथवा शांति प्राप्त कर सकते है।
जब हमारा घर गन्दा होता है तो हम उसे स्वयं साफ़ करते है, यदि हमारा शरीर गन्दा होता है तो उसे भी हम स्वयं साफ़ करते है और यदि हमारा कपड़ा गन्दा हो जाता है तो उसे भी हम स्वयं साफ़ करते है तथा विषम प्रस्थतियों में किसी अन्य व्यक्ति या नौकर से साफ़ करवाते है किन्तु अन्य व्यक्ति या नौकर गंदगी को साफ़ करने का ढोंग करते है और केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते है तथा हमारे घर, शरीर या कपड़ा की मुख्य गंदगी को छोड़ देते है तथा इस गंदगी से बीमारी होने का भय रहता है और यदि सही समय पर बीमारी का इलाज नहीं किया गया तो यह बीमारी आने वाले समय में एक लाईलाज बीमारी बन जाता है और इस लाईलाज बीमारी से हमारे शरीर की मृत्यु होने का भय रहता है।
किन्तु जब हमारी शुद्ध एवं पवित्र आत्मा असत्य-कर्म करने से अशुद्ध या अपवित्र होता है तो इसे साफ़ करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति का चुनाव करते है और यह अन्य व्यक्ति हमारे शुद्ध एवं पवित्र आत्मा की मुख्य गंदगी असत्य-कर्म को साफ करने का ढोंग करते है और केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते है तथा हमारे शुद्ध एवं पवित्र आत्मा की मुख्य गंदगी असत्य-कर्म को छोड़ देते है तथा निरन्तर असत्य-कर्म करने से हमारी आत्मा पूर्ण रूप से अशुद्ध एवं अपवित्र हो जाता है और यदि सही समय पर अशुद्ध एवं अपवित्र आत्मा को शुद्ध एवं पवित्र नहीं किया गया तो हमारी शुद्ध एवं पवित्र आत्मा का शुद्धिकरण असंभव हो जाता है जिसके कारण हमारे शुद्ध एवं पवित्र आत्मा के मृत्यु होने का भय रहता है।